Sunday, July 5, 2015

अश्क

 अश्क

अश्क  बोलते  है ,
कुछ  टटोलते  है ,
गम  में  डोलते  है ,
और  ख़ुशी  भी  तोलते है
जाने  कहा  रहते  है ,
की   ये  बात  नहीं  मानते
जाने  क्यों  बहते  है ,
ये  वजूद  भी  नहीं  जानते
मन  की  गहराई  से ,
दिल  की  तन्हाई  से ,
है  क्या  इनका  रिश्ता
जिंदगी  की  राहों में
गिरे  किसी  अपनों  की  बाँहों  में
आहिस्ता  आहिस्ता
सपनो  के  बिखरने  से
बिखरते  है  ये  भी
उमंगो     मचलने  से
मचलते  है  ये  भी ,
कभी  सावन  बन  कर
दरिया  बनाते  है,
कभी  आते  नही  बुलाने से भी
शायद  कही  छुप जाते  है




























शरमाते  है  ये  ,
भीड़  में  आने  से ,
बेफिक्र  निकलते  है  बेपरवाह  यूँ ही ,
बेपर्दा  हो  ज़माने  से
पर  गुज़ारिश  है  इनकी ,
आँखों  में  हो  आशियाना
ख्वाहिश  में  इनकी ,
ना कोई  ठौर  ,ना  कोई  ठिकाना
सुन  सको  तो  सुन  लो
इनकी  दबी  हुई  आहट
कही  नफरत  का  अफ़साना  हैं .
कही  बेहिसाब  चाहत
अश्क   है  ये  बड़े   अज़ीज़
इन्हे महज  पानी ना मान  लेना ,
इंसान  के  हो  या  फ़रिश्ते के
इनकी एहमियत  जान  लेना



-सिद्धार्थ श्रीवास्तव ( सिद्धू)

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