अश्क
अश्क बोलते है
,
कुछ टटोलते है
,
गम में डोलते है
,
और ख़ुशी भी तोलते
है
जाने कहा रहते है
,
की ये बात नहीं मानते
जाने क्यों बहते है
,
ये वजूद भी नहीं जानते
मन की गहराई से
,
दिल की तन्हाई से
,
है क्या इनका रिश्ता
जिंदगी की राहों
में
गिरे किसी अपनों की बाँहों में
आहिस्ता आहिस्ता
सपनो के बिखरने से
बिखरते है ये भी
उमंगो क मचलने से
मचलते है ये भी
,
कभी सावन बन कर
दरिया बनाते है,
कभी आते नही बुलाने
से भी
शायद कही छुप
जाते है
शरमाते है ये ,
भीड़ में आने से
,
बेफिक्र निकलते है बेपरवाह यूँ
ही ,
बेपर्दा हो ज़माने से
पर गुज़ारिश है इनकी
,
आँखों में हो आशियाना
ख्वाहिश में इनकी
,
ना कोई
ठौर ,ना कोई ठिकाना
सुन सको तो सुन लो
इनकी दबी हुई आहट
कही नफरत का अफ़साना हैं
.
कही बेहिसाब चाहत
अश्क है ये बड़े
अज़ीज़
इन्हे महज
पानी ना मान लेना
,
इंसान के हो या फ़रिश्ते
के
इनकी एहमियत जान लेना
-सिद्धार्थ श्रीवास्तव ( सिद्धू)
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