तन्हाई , रुस्वाई , हैं कई परछाई,
सूना जीवन, और अंगड़ाई ,
कर लिया इसे आबाद फिर से ,
कर लिया फिक्र से सौदा
भटक भटक के ना भटके ,
उलझ उलझ के ना उलझे,
ये कैसी है कसमकश ,
या है ये फिक्र से सौदा
ज़िन्दगी तो यूँ ही कटेगी ,
चिंताएं हटाने से ही हटेंगी,
पर खुशियों के पार देखो तुम,
और नदियों की धार देखो तुम ,
बस कर लो फिक्र से सौदा
बड़े बड़े पहाड़ मिलेंगे ,
कभी ग़म, कभी फूल खिलेंगे ,
तड़पाएँगे , तरसाएँगे ,
कुछ अजीब से अनजाने पल,
पर कर लो तुम फिक्र से सौदा
मुश्किलें बड़ी ज़ालिम हैं ,
पर आशाएं भी हसीं कम नहीं ,
कंकड़ पत्थड़ है बिखरे पड़े,
पर क्यारियां भी खूब हैं , कोई ग़म नहीं ,
बस कर लो तुम फिक्र से सौदा
धुँए में उड़ाते चलो ,
थोड़ा थोड़ा चुराते चलो ,
हॅसते चलो, हंसाते चलो,
रूठने वालों को मनाते चलो,
पर कर लो फिक्र से सौदा
अरे साहब इधर उदार ना देखो,
बस अपनी चाल फेंको ,
हारोगे या तुम जीतोगे ,
हर तरफ बस सबक देखो,
और कर लो तुम फिक्र से सौदा
मुहबत्ते होंगी ही,
बच ना सकोगे ,
इनायतें होंगी ही,
बच ना सकोगे ,
सूखे में भी तुम सजर देखो,
दरिया में भी तुम शहर देखो,
बस कर लो तुम फिक्र से सौदा
कब तक छुपोगे ,
पत्तो की आड़ में ,
एक दिन निकलोगे ,
बीच बाजार में ,
खरीदोगे ही तुम बनिए की दुकान से गुड़, ,
अमूमन, रुक लो थोड़ी देर ,
और कर लो फिक्र से सौदा,
कर लो तुम फिक्र से सौदा
-सिद्धार्थ
ख़ास शुक्रिया -- मेरे बचपन के रिक्शेवाले, मंजूर मियां