Sunday, November 29, 2020

मेरी कहानी

 एक शक्ति है अजीब सी , 

एक प्रकाश है गजब का , 

एक पुंज है अनंत सा, 

ना शुरू, ना ही अंत सा, 


हर समय, हर पल , 

एक नशा, 

एक राह है अधूरी सी, 

लग रहा है कहकशा कोई, 

जल रही एक नूरी सी , 


मंजिल के पास है एक धुआं, 

महफिलों में मेहरबान, 

चल चलूँगा , 

मैं चलूँगा बस , 

जहाँ जाये कारवां, 












उस रौशनी के पीछे हर पल, 

जो है मुझे दिखा रही, 

एक रास्ता, एक नसीब का , 

जो है मुझे सीखा रही, 

फर्क दूर और करीब का, 


इशारों का शैलाब हर पल, 

आता है मेरे दरमियान, 

बारिश कभी, कभी सूखा पड़ा, 

कभी शर्दियाँ, कभी गर्मियां , 


चला रहा हूँ , एक कश्ती हर पल, 

तूफानों का मैं बाग़बान, 

दिए जलाता बारिश में भी, 

चाहे कितने ही हों इन्तेहाँ , 













चलते रहो की ज़माना , 

बाकि अभी है होने को, 

खुदा की बंदगी में अब तो, 

बाकि नहीं रहा कुछ खोने को, 


जिस तरफ जाएगी हवा, 

उसी तरफ चल दूंगा, 

जहाँ तक जाएगी नज़र, 

वो ज़मीं ले लूंगा , 


ख़ुशी की जला के अंगीठी, 

ग़मों की खाट पे झूमूँगा , 

दिन की मस्ती में खेलूंगा, 

और रात की चादर को ओढूँगा , 


बस यही एक बात है बतानी, 

यही है मेरी कहानी , 

वक़्त के इस दरिया में, 

थोड़ी रेत है, थोड़ा पानी, 


- सिद्धार्थ 

Sunday, August 30, 2020

फिक्र से सौदा ,

 तन्हाई , रुस्वाई , हैं कई परछाई, 

सूना जीवन, और अंगड़ाई , 

कर लिया इसे आबाद फिर से , 

कर लिया फिक्र से सौदा


भटक भटक के ना भटके , 

उलझ उलझ के ना उलझे, 

ये कैसी है कसमकश , 

या है ये फिक्र से सौदा


ज़िन्दगी तो यूँ ही कटेगी , 

चिंताएं हटाने से ही हटेंगी, 

पर खुशियों के पार देखो तुम, 

और नदियों की धार देखो तुम , 

बस कर लो फिक्र से सौदा












बड़े बड़े पहाड़ मिलेंगे , 

कभी ग़म, कभी फूल खिलेंगे , 

तड़पाएँगे , तरसाएँगे , 

कुछ अजीब से अनजाने पल, 

पर कर लो तुम फिक्र से सौदा


मुश्किलें बड़ी ज़ालिम हैं , 

पर आशाएं भी हसीं कम नहीं , 

कंकड़ पत्थड़ है बिखरे पड़े, 

पर क्यारियां भी खूब हैं , कोई ग़म नहीं , 

बस कर लो तुम फिक्र से सौदा


धुँए में उड़ाते चलो , 

थोड़ा थोड़ा चुराते चलो , 

हॅसते चलो, हंसाते चलो, 

रूठने वालों को मनाते चलो, 

पर कर लो फिक्र से सौदा












अरे साहब इधर उदार ना देखो, 

बस अपनी चाल फेंको , 

हारोगे या तुम जीतोगे , 

हर तरफ बस सबक देखो, 

और कर लो तुम फिक्र से सौदा


मुहबत्ते होंगी ही, 

बच ना सकोगे , 

इनायतें होंगी ही, 

बच ना सकोगे , 

सूखे में भी तुम सजर देखो, 

दरिया में भी तुम शहर देखो, 

बस कर लो तुम फिक्र से सौदा 


कब तक छुपोगे , 

पत्तो की आड़ में , 

एक दिन निकलोगे , 

बीच बाजार में , 

खरीदोगे ही तुम बनिए की दुकान से गुड़, , 

अमूमन, रुक लो थोड़ी देर , 

और कर लो फिक्र से सौदा, 

कर लो तुम फिक्र से सौदा 


-सिद्धार्थ

ख़ास शुक्रिया -- मेरे बचपन के रिक्शेवाले, मंजूर मियां 

Saturday, August 22, 2020

मैंने बस चलना सीखा है ,

 

हर समय, हर घडी, 

हर पल, हर वक़्त, 

हर नगर, हर डगर , 

हर शाम , हर पहर, 

मैंने बस चलना सीखा है , 


पीछे मुड़ने का वक़्त नहीं , 

ना ही सोचने का समय, 

ना ही रुकने का आलम है , 

गर्मियों की तपिश में भी मैंने , 

बर्फ की तरह गलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है , 


जग जाता हूँ मैं हर रोज़, 

ख्वाहिसों की शम्मा जला कर, 

कई दर्द, कई अरमानों को , 

तकिये के नीचे दबा के 

दोपहर की धुप में हर दिन, 

पत्थर की तरह जलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है , 













सदियाँ बीत गयी, पर जमीं अभी तक सूनी है , 

पायल की एक झंकार को तरसूं , 

दिन लम्बे ,और रात दोगुनी है , 

शाम के सूरज की तरह मैंने , 

हर रोज़ ढलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है 


कई आय, कई गए , 

कई पुराने, कई नए , 

किस्से तो मेरे बोरी भर के , 

और घटनाएं भी अनंत है , 

अनंत और अथाह के बीच, 

मैंने हाथों को मलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है , 


अनिश्चितताओं से स्वांग रचाया , 

निश्चितताओं से भी प्यार किया , 

सोचने और समझने से ले कर , 

बहकने से भी इंकार किया , 

जज़्बातों की आंधी में भी मैंने 

हसीं के पुए तलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है 


घटित होता है एक क्रम , 

रचित होता है एक संसार, 

धूमिल होती है कल्पनाएं ये ,

लेतीं कई अकार, 

किसी क खुशियों के वास्ते मैंने , 

बलाओं की तरह टलना सीखा है ,

मैंने बस चलना सीखा है 



Friday, August 14, 2020

एक सितारा ऐसा भी था

 छोटा सा, खिलता सा, 

पानियों में , मिलता सा, 

चलता सा, रुकता सा, 

गिरता सा, झुकता सा , 

राज दुलारा ऐसा भी था 

एक सितारा ऐसा भी था 


बचपने की सादगी से ले कर, 

जवानी के अरमानों तक, 

फिल्म की शुरुआत से ले कर , 

नाटक के अंजामों तक, 

एक पिटारा ऐसा भी था , 

एक सितारा ऐसा भी था 


हस्ता था वो दिल से पूरे, 

छोड़ गया वो ख्वाब अधूरे, 

उछलता था, बहकता था 

जोश में थिरकता था , 

एक इशारा ऐसा भी था , 

एक सितारा ऐसा भी था, 


म्यूजिक की मस्ती से, 

डांस और रोमांस तक, 

चीनी की चाशनी में खोया , 

छोटे बड़े चांस तक, 

एक इकतारा ऐसा भी था, 

एक सितारा ऐसा भी था , 



खूब हॅसाये, खूब रुलाये , 

सबको वो एक शैर कराये, 

नयी नयी  तरकबों से , 

सुलझाए,उलझाए 

किस्से सुनाये , 

बड़ा प्यारा ऐसा भी था , 

एक सितारा ऐसा भी था , 


माँ की याद में डूबा , 

पिता का गौरव, 

धोनी की याद दिलाता , 

हरसू फैला सौरभ, 

एक बहारा ऐसा भी था ,

एक सितारा ऐसा भी था , 


ख्वाब थे उसके आसमान से आगे , 

नींद में ही वो कई बार जागे, 

बर्फ की चादरों में लिपटा , 

झील की खुशबू से लथपथ 

एक शिकारा ऐसा भी था , 

एक सितारा ऐसा भी था , 


सितारों में मिल गया वो एक सितारा , 

बहुत याद आएगा , 

इंसानों की हद को , 

वो हमेशा याद दिलाएगा , 

छोड़ गया जो  काम अधूरे,

करने वो वापस आएगा , 

एक सितारा ऐसा भी था 

एक सितारा ऐसा भी था .

Saturday, August 1, 2020

कुछ छूट गया, कुछ छोड़ दिया

अनमने मन के आँगन में ,
कुछ पत्ते आम के गिरते ,
भरी दुपहरी के बीच,
सरकते ससरते, पड़ते , बिखरते ,

हो गया अब वक़्त, कुछ कह देने का ,
और चल देने का कई वादियों से,
नयी फ़िज़्ज़ाओं की खोज में ,
दूर ज़िंदा होती इन बर्बादियों से ,

हंसी के ठहाके,
गूँज जाएँ  फिर से इन क्यारियों के बीच ,
लतीफे गुलज़ार हो जाएं यूँ ही ,
दे फिर से इस दिल को सींच,

इसी कश्मकश में ,
जो मिला सो मिला, जो नहीं मिला उसे तोड़ दिया ,
खोजता रहा एक दबा खजाना, पर वापस लाने की कोशिश में
कुछ छूट गया , कुछ छोड़ दिया















ए ग़ालिब तू भी हसता होगा देख कर मुझे ,
या रोना आता होगा, तुझे मेरी तक़दीर पर ,
आसुओं का घरौंदा बनाया मैंने ,
एक गुमसुदा पत्थर की लकीर पर ,

सुना है सोच के आगे भी जहाँ होता है ,
रोकने से भी रुक जाना कहाँ होता है ,
वक़्त थम जाये तो पूछ लूँ उससे,
लूट लो जहाँ फिर भी ,
पर हर मुसाफिर को खोना यहाँ होता है ,

इन्हीं ख्वाहिसों के आलम में ,
जो मुड़ा सो मुड़ा, जो नहीं मुड़ा उसे मोड़ दिया ,
जंग में जीता एक जहाँ , पर लूटी हुई एक बस्ती में ,
कुछ छूट गया , कुछ छोड़ दिया ,




















मुड़ कर पीछे देखने वालों को,
कमजोर कहती है दुनिया ,
वो सिकंदर भी था,
जिसने मुड़ कर पीछे देखा था ,
वो अकबर भी था ,
जिसके ख्वाब रहे कई अधूरे ,

इन्ही उतरती डूबती हुई कश्तियों ने ,
कई राहगीरों को जीते देखा ,
हर खुशी, हर ग़म को ,
एक ही तरीके से पीते देखा  ,

उफनते दरियाओं और तूफ़ाओं में ,
जो नहीं बदला, उसे छोड़ दिया ,
खोजे कई जज़ीरे नए , पर घर बनाने की कोशिश में,
कुछ छूट गया , कुछ छोड़ दिया

-सिद्धार्थ

Sunday, July 12, 2020

ठोकर

जीवन एक सागर है,
सासें है एक नौका,
राहगीर है खेवैया ,
हर पल ढूंढें मौका,

लहरों पर डूबती उतराती,
चलती जाये हर पल,
अपनी मंजिल को पाने को ,
जलती जाये हर पल,

















आंधी और तूफ़ान है ,
बस इस सफर का हिस्सा ,
कभी है नाटक, कभी नौटंकी,
कभी कहकहा, कही किस्सा

संभल कर गिरना
और गिर कर संभलना,
ढल कर डूबना ,
और डूब कर ढलना

जीवन का यह सार है,
सीखा जिसने यही सत्य है ,
उसकी नौका पार है

-सिद्धार्थ 

Friday, July 3, 2020

कोशिश

ये ज़लज़ला है,
एक शख्त सा ,
ये फैसला है ,
वक़्त का

चल रहे हैं हर उस राह पर ,
जहाँ है फैली एक साजिश

जल रहे हैं उस राख पर ,
बूझती नहीं एक तपिश
रूकती नहीं , थकती नहीं ,
बस मजबूत होती कोशिश ,

मिट जाने का खौफ नहीं ,
अब ना है डूब जाने का है खतरा ,
होगा जो देखेंगे हम ,
कौन है रोके जतरा ,














तोपों  की सलामी से,
अब होगा स्वागत ,
बरसो की गुलामी से है,
निकलने की है चाहत ,

रुक ना सकूं अब मन के रोके से ,
झुक ना सकूं, अब हालातों के झोके से,

ए हवा तू मुझे पहचान ले ,
मेरा घर , मेरी मंजिल ,
सब का पता जान ले ,

क्योकि अब मैं,
चलता ही जाऊंगा ,
प्यार की हर क्यारी ,
और खुशियां तेरे दमन में तोर लाऊंगा

-सिद्धार्थ

मेरी कहानी

 एक शक्ति है अजीब सी ,  एक प्रकाश है गजब का ,  एक पुंज है अनंत सा,  ना शुरू, ना ही अंत सा,  हर समय, हर पल ,  एक नशा,  एक राह है अधूरी सी,  ल...