एक शक्ति है अजीब सी ,
एक प्रकाश है गजब का ,
एक पुंज है अनंत सा,
ना शुरू, ना ही अंत सा,
हर समय, हर पल ,
एक नशा,
एक राह है अधूरी सी,
लग रहा है कहकशा कोई,
जल रही एक नूरी सी ,
मंजिल के पास है एक धुआं,
महफिलों में मेहरबान,
चल चलूँगा ,
मैं चलूँगा बस ,
जहाँ जाये कारवां,
उस रौशनी के पीछे हर पल,
जो है मुझे दिखा रही,
एक रास्ता, एक नसीब का ,
जो है मुझे सीखा रही,
फर्क दूर और करीब का,
इशारों का शैलाब हर पल,
आता है मेरे दरमियान,
बारिश कभी, कभी सूखा पड़ा,
कभी शर्दियाँ, कभी गर्मियां ,
चला रहा हूँ , एक कश्ती हर पल,
तूफानों का मैं बाग़बान,
दिए जलाता बारिश में भी,
चाहे कितने ही हों इन्तेहाँ ,
चलते रहो की ज़माना ,
बाकि अभी है होने को,
खुदा की बंदगी में अब तो,
बाकि नहीं रहा कुछ खोने को,
जिस तरफ जाएगी हवा,
उसी तरफ चल दूंगा,
जहाँ तक जाएगी नज़र,
वो ज़मीं ले लूंगा ,
ख़ुशी की जला के अंगीठी,
ग़मों की खाट पे झूमूँगा ,
दिन की मस्ती में खेलूंगा,
और रात की चादर को ओढूँगा ,
बस यही एक बात है बतानी,
यही है मेरी कहानी ,
वक़्त के इस दरिया में,
थोड़ी रेत है, थोड़ा पानी,
- सिद्धार्थ