Friday, July 3, 2020

कोशिश

ये ज़लज़ला है,
एक शख्त सा ,
ये फैसला है ,
वक़्त का

चल रहे हैं हर उस राह पर ,
जहाँ है फैली एक साजिश

जल रहे हैं उस राख पर ,
बूझती नहीं एक तपिश
रूकती नहीं , थकती नहीं ,
बस मजबूत होती कोशिश ,

मिट जाने का खौफ नहीं ,
अब ना है डूब जाने का है खतरा ,
होगा जो देखेंगे हम ,
कौन है रोके जतरा ,














तोपों  की सलामी से,
अब होगा स्वागत ,
बरसो की गुलामी से है,
निकलने की है चाहत ,

रुक ना सकूं अब मन के रोके से ,
झुक ना सकूं, अब हालातों के झोके से,

ए हवा तू मुझे पहचान ले ,
मेरा घर , मेरी मंजिल ,
सब का पता जान ले ,

क्योकि अब मैं,
चलता ही जाऊंगा ,
प्यार की हर क्यारी ,
और खुशियां तेरे दमन में तोर लाऊंगा

-सिद्धार्थ

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