Sunday, August 30, 2020

फिक्र से सौदा ,

 तन्हाई , रुस्वाई , हैं कई परछाई, 

सूना जीवन, और अंगड़ाई , 

कर लिया इसे आबाद फिर से , 

कर लिया फिक्र से सौदा


भटक भटक के ना भटके , 

उलझ उलझ के ना उलझे, 

ये कैसी है कसमकश , 

या है ये फिक्र से सौदा


ज़िन्दगी तो यूँ ही कटेगी , 

चिंताएं हटाने से ही हटेंगी, 

पर खुशियों के पार देखो तुम, 

और नदियों की धार देखो तुम , 

बस कर लो फिक्र से सौदा












बड़े बड़े पहाड़ मिलेंगे , 

कभी ग़म, कभी फूल खिलेंगे , 

तड़पाएँगे , तरसाएँगे , 

कुछ अजीब से अनजाने पल, 

पर कर लो तुम फिक्र से सौदा


मुश्किलें बड़ी ज़ालिम हैं , 

पर आशाएं भी हसीं कम नहीं , 

कंकड़ पत्थड़ है बिखरे पड़े, 

पर क्यारियां भी खूब हैं , कोई ग़म नहीं , 

बस कर लो तुम फिक्र से सौदा


धुँए में उड़ाते चलो , 

थोड़ा थोड़ा चुराते चलो , 

हॅसते चलो, हंसाते चलो, 

रूठने वालों को मनाते चलो, 

पर कर लो फिक्र से सौदा












अरे साहब इधर उदार ना देखो, 

बस अपनी चाल फेंको , 

हारोगे या तुम जीतोगे , 

हर तरफ बस सबक देखो, 

और कर लो तुम फिक्र से सौदा


मुहबत्ते होंगी ही, 

बच ना सकोगे , 

इनायतें होंगी ही, 

बच ना सकोगे , 

सूखे में भी तुम सजर देखो, 

दरिया में भी तुम शहर देखो, 

बस कर लो तुम फिक्र से सौदा 


कब तक छुपोगे , 

पत्तो की आड़ में , 

एक दिन निकलोगे , 

बीच बाजार में , 

खरीदोगे ही तुम बनिए की दुकान से गुड़, , 

अमूमन, रुक लो थोड़ी देर , 

और कर लो फिक्र से सौदा, 

कर लो तुम फिक्र से सौदा 


-सिद्धार्थ

ख़ास शुक्रिया -- मेरे बचपन के रिक्शेवाले, मंजूर मियां 

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