Saturday, August 22, 2020

मैंने बस चलना सीखा है ,

 

हर समय, हर घडी, 

हर पल, हर वक़्त, 

हर नगर, हर डगर , 

हर शाम , हर पहर, 

मैंने बस चलना सीखा है , 


पीछे मुड़ने का वक़्त नहीं , 

ना ही सोचने का समय, 

ना ही रुकने का आलम है , 

गर्मियों की तपिश में भी मैंने , 

बर्फ की तरह गलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है , 


जग जाता हूँ मैं हर रोज़, 

ख्वाहिसों की शम्मा जला कर, 

कई दर्द, कई अरमानों को , 

तकिये के नीचे दबा के 

दोपहर की धुप में हर दिन, 

पत्थर की तरह जलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है , 













सदियाँ बीत गयी, पर जमीं अभी तक सूनी है , 

पायल की एक झंकार को तरसूं , 

दिन लम्बे ,और रात दोगुनी है , 

शाम के सूरज की तरह मैंने , 

हर रोज़ ढलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है 


कई आय, कई गए , 

कई पुराने, कई नए , 

किस्से तो मेरे बोरी भर के , 

और घटनाएं भी अनंत है , 

अनंत और अथाह के बीच, 

मैंने हाथों को मलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है , 


अनिश्चितताओं से स्वांग रचाया , 

निश्चितताओं से भी प्यार किया , 

सोचने और समझने से ले कर , 

बहकने से भी इंकार किया , 

जज़्बातों की आंधी में भी मैंने 

हसीं के पुए तलना सीखा है , 

मैंने बस चलना सीखा है 


घटित होता है एक क्रम , 

रचित होता है एक संसार, 

धूमिल होती है कल्पनाएं ये ,

लेतीं कई अकार, 

किसी क खुशियों के वास्ते मैंने , 

बलाओं की तरह टलना सीखा है ,

मैंने बस चलना सीखा है 



No comments:

Post a Comment

मेरी कहानी

 एक शक्ति है अजीब सी ,  एक प्रकाश है गजब का ,  एक पुंज है अनंत सा,  ना शुरू, ना ही अंत सा,  हर समय, हर पल ,  एक नशा,  एक राह है अधूरी सी,  ल...