कशमकश
बड़ा चंचल है मन आज
बड़ी परेशान है आत्मा
कोई भूचाल सा है दिल में
जिंदगी बड़ी मुश्किल में
कभी अगले देखता , कभी बगले,
कभी गाड़ियां देखता, कभी बंगले
कभी इस पार , तो कभी उस पार
अंदर एक बार , तो बाहर बार बार
मौसम का जायज़ा लेने में ,
भला क्या बुराई है,
भरी महफ़िल में बैठे है ,
साहब, पर फिर भी तन्हाई है
खून खौलता है, बुलबुले ले कर,
खुशियां ले जाता है, कोई जख्म दे कर
मुर्दो की भीड़ में , उल्टा चल रहा हूँ जैसे
अंदर कुछ, बाहर कुछ, ये चेहरे कैसे कैसे
मुकद्दर पे रोता है आका,
और मज़लूम खुशियां मनाता है
इस टूटे चिराग की दस्तान क्या बताएं
इसका जिंन्न बस आफत ही लाता है,
क्या इसी कशमकश का नाम ज़िन्दगी है ,
जहाँ बंदगी में भी थोड़ी गन्दगी है
इंसान की रूह को यहाँ आग नसीब नहीं ,
वहां जानवरों को क्यों शर्मिंदगी है ?
- सिद्धार्थ श्रीवास्तव
bhai....shabd..dilko chuu gaye
ReplyDeleteThanks Bhai ...
ReplyDelete