Thursday, July 14, 2016

परिचय का पर्चा

                                                         परिचय का पर्चा



अपना परिचय चंद शब्दों में देना चाहूँगा . मेरा नाम सिद्धार्थ श्रीवास्तव है. पर आज कल की भाग दौर की जिंदगी में जहाँ इंसान को सांस लेने की फुर्सत न हो, वहां मैं आपको इतनी तकलीफ नहीं देना चाहूंगा. बहरहाल आप मुझे सिधू भी बुला सकते है. कॉलेज के कुछ लटिफेबाज और आवारागर्द लौंडो ने मेरा यह  नाम पता नहीं क्या सोच के  रखा. पर पते की बात कहें तो यही लड़के मेरे घनिष्ठा मित्र थे. आज इतने सालों बाद भी मैं यही नाम लोगों के मुंह से सुनना चाहता हूँ, और अपनापन महसूस करता हूँ.

मैं  एक असाधारण  भारतीय नर हूँ , जिसे क्रिकेट और चटपटी राजनीती से रत्ती भर भी लगाव नहीं. संगीत मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा है, और मुझमे हमेशा एक आशा की किरण जगाए रखता है.  दर्शन मेरे लिए हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है . प्रकृति दर्शन . माफ़ कीजियेगा दर्शन शास्त्र तो बताना भूल ही गया

इस ब्लॉग में मैंने अपने जीवन में उठने वाली भावनात्मक तरंगो को एक रूप देने की कोशिश की है . मेरी कवितायेँ और शायरियाँ मेरे अंदर उठने वाले  रोजमर्रा के सवालों का ही एक अवतार मात्र है. मैं अपनी ज़िन्दगी का वो पल कभी नहीं भूल सकता .जब पहली बार मैंने गुलज़ार साहब के द्वारा लिखे हुए तराने सुने . और गायक भी कोई और नहीं , बल्कि सुर सम्राट स्व जगजीत सिंह जी. इस एल्बम का नाम मरशिम था. बस यू समझ ले की गुलज़ार साहब ने मेरी नब्ज़ पकड़ ली. एक गाने के बोल कुछ ऐसे थे -

एक पुराना मौसम लौटा
याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है
वो भी हो तनहाई भी

मैं भावना की आंधी में बहने लगा, पर शब्दों के जाल से निकल नहीं पा रहा था. और शायद आज भी उसी जाल में एक मछली की तरह हूँ.






 सुबह सुबह  इक  खाब  की  दस्तक  पर  दरवाजा  खोला
 देखा  सरहद  के  उस  पार  से  कुछ  मेहमान  आये  हैं
 आँखों  से  मायूस  सारे , चहरे  सारे  सुने  सुनाये
 पाँव  धोए  हाथ  धुलाए , आँगन  में  आसान  लगवाए
 और  तंदूर  पे  मक्की  के  कुछ  मोठे  मोठे  रॉट  पकाए
 पोटली  में  मेहमान  मेरे
 पिछले  सालों  की  फसलों   का  गुड   लाये  थे
 आँख  खुली  तोह  देखा  घर  में  कोइ नहीं  था
 हाथ  लगाकर  देखा  तोह  तंदूर  अभी  तक   बुझा  नहीं  था
 और  होंटो  पर  मीठे  गुड़  का  जायका  अब   तक  चिपक  रहा  था
 खाब  था  शायद  खाब  ही  होगा
 सरहद   पर  कल  रात  सुना  था  चली  थी गोली
 सरहद  पर  कल  रात  सुना  है  कुछ  ख़ाबों  का  खून  हुआ है







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