विनाश की आँधी ....
चल पड़ी है एक बार फिर ,
विनाश की वह आँधी,
समाज के विघटन की
और सर्वनाश की आँधी ...
आशा और निराशा के बीच
द्वन्द की एक आँधी
अपेक्छा और अभिलासा की ,
स्वछंद सी एक आँधी ..
निर्मम हत्याओं की लगाती ,
एक कतार सी यह आँधी ,
धर्म और अधर्म के वकीलों के
व्यापार की ये आँधी ,
मानवता और संवेदना के ,
परिहास की एक आँधी ,
निरन्तर धूमिल होते धैर्य
और विश्वास की एक आँधी
स्वार्थ और लोभ के कीचड़ में सनी
बदहवास यह आँधी ,
प्रेम और स्नेह की छाया से ,
हताश ये आँधी ...
आँधी है कोरे उसूलों की
आँधी है झूठे रसूलों की
झूठे बहकावे , क्षणिक आवेश
और कच्चे उन्माद की एक आँधी
सोई रही जो सदियों तक ,
बरसों पड़ी थी कब्र में ,
अब आज़ाद है ये आँधी
अब आज़ाद है ये आँधी
-सिद्धार्थ श्रीवास्तव
Great poem. Clearly pictures our current society. Keep it up!!
ReplyDeleteThank you Satish
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