Friday, April 24, 2020

चल दिया मैं फिर कहीं

चल दिया मैं फिर कहीं
हवाओं के साथ
विश्वास है मन में नया
है हाथों में हाथ

नज़ारा है पुराना ये,
नया कुछ भी नहीं ,
निगाहें है नयी बस ,
ले जाए मुझे दूर कहीं

रुक गया तो थम गया
थम गया तो रुका कहाँ
वक़्त का पहिया घूमे पल पल
पता नहीं मैं झुका कहाँ

सुनता हूँ मैं कई आवाज़ें ,
कुछ बाहर  कुछ अंदर ,
बहता हूँ मैं पानी जैसा
कभी दरिया , कभी समंदर





















देखूं ख्वाब मैं घडी घडी ,
उगता सूरज चढ़ता जाये,
पुरानी कमान में तीर नया है,
युद्ध ये अर्जुन लड़ता जाये ,

दीवारें है चारो खाने,
पर रास्ता एक अदृश्य है ,
अरमानों ने जो दामन थामा ,
बदल रहा हर परिदृश्य है ,

बढ़ रहा हूँ मैं धीरे धीरे
पर बढ़ना जरूरी है,
ना सोचूँ तो पास है सब कुछ
सोचो तो सब कुछ दूरी है ,

रोक रहा हूँ धीरे धीरे ,
अब मैं कलम की रफ़्तार ,
देखोगे तो पाओगे तुम
यही जीवन का सार

-सिद्धार्थ 

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